महात्मा गांधी की भूख हड़ताल (1932)

महात्मा गांधी

महात्मा गांधी
प्रकारजानकारी
विषयमहात्मा गांधी की भूख हड़ताल 1932
आयोजन का वर्ष1932
कारणब्रिटिश सरकार का “अनुच्छेदी” पर विभाजन
हड़ताल की शुरुआत8 मई 1932
हड़ताल की जगहयरवडा, दिल्ली
उद्देश्यब्रिटिश सरकार को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करना
भूख हड़ताल की सफलताभारतीय स्वतंत्रता संग्राम को और आकर्षक बनाना, ब्रिटिश सरकार को गुज़िशगोई को पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करना

 

DETAILS

महात्मा गांधी की भूख हड़ताल

गांधीजी  की भूख हड़ताल 1932: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण दौर में एक महान कदम

गांधीजी , अहिंसा के प्रणेता और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता के रूप में जाने जाते हैं, ने अपने जीवन के दौरान कई भूख हड़तालों का आयोजन किया। इनमें से एक महत्वपूर्ण भूख हड़ताल 1932 में हुई थी, जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित किया।

1932 में भूख हड़ताल का कारण:

गांधीजी  की भूख हड़ताल का कारण था ब्रिटिश सरकार के आलोचनात्मक निर्णय का, जिसमें वे “अनुच्छेदी” (दलित) को अलग-अलग निर्वाचनीय मंडलों में विभाजित करने का फैसला किया था। गांधीजी, जो समाज में सभी वर्गों और धर्मों के एकता का पक्षधर थे, इस विभाजन का विरोध करने के लिए भूख हड़ताल का आलंब लिया। इस निर्णय के खिलाफ उन्होंने बड़े पैमाने पर विरोध किया और इसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नये मोड़ की शुरुआत कहा।

भूख हड़ताल की शुरुआत:

भूख हड़ताल की शुरुआत 8 मई 1932 को गांधीजी द्वारा अपने सजीवन के अंत की आशंका के साथ की गई थी। वे नमक सत्याग्रह (Salt Satyagraha) के माध्यम से इस निर्णय के खिलाफ थे। उन्होंने अन्न त्याग करने का आलंब लिया और इसे दिल्ली के यरवडा के गांधी अश्रम में अपने संगठन के साथ किया। इस समय, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम अपने ऊर्जावान समय की ओर बढ़ रहा था और गांधीजी का प्रयास इसे और बढ़ावा देने के रूप में आया।

भूख हड़ताल का उद्देश्य:

गांधीजी का उद्देश्य था ब्रिटिश सरकार को यह दिखाना कि वे अपने संघर्ष के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को नष्ट करने के लिए तैयार हैं, लेकिन वे अहिंसा के माध्यम से इसे हासिल करने की कदम से ही संघर्ष करेंगे। इस भूख हड़ताल के दौरान, उन्होंने नमक का निर्माण और बेचने का काम भी किया, जिससे वे ब्रिटिश की नमक का मोनॉपॉली तोड़ने का संकेत दें रहे थे।

भूख हड़ताल की सफलता:

भूख हड़ताल ने विश्वभर में सामाजिक चर्चा को बढ़ावा दिया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को और भी आकर्षक बनाया। गांधीजी के साथी अद्वितीय प्रतिबद्धता के साथ खड़े रहे और उन्होंने अपने उद्घाटन के बाद भूख हड़ताल को तोड़ दिया, लेकिन उनका प्रयास ब्रिटिश सरकार को उनकी गुज़िशगोई को फिर से विचार करने के लिए मजबूर किया। इससे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को और बड़ी मित्तियों के साथ साबित हुआ और लड़ाई की आगे की दिशा को साकार किया।

गांधीजी  की भूख हड़ताल का योगदान:

गांधीजी  की भूख हड़तालें सिर्फ़ उनके व्यक्तिगत त्याग का प्रतीक नहीं थीं, बल्कि ये अहिंसात्मक प्रदर्शन के शक्तिशाली उपकरण भी थे जो इन्सानों को बड़े पैमाने पर जागरूक करने और स्वतंत्रता संग्राम के मुद्दों को सामाजिक चर्चा में लाने में मदद करते थे। उन्होंने न्याय और समानता के लिए अपने स्वास्थ्य और जीवन की बाजी लगाई और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया

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